"अणणा" का 'आदर्शलोक' यह कभी एक विशाल मदिरालय था...........आज एक प्रगतिशील गांव है
किन्तु............
वर्ष १९७५ तक विशाल मदिरालय था वह गाव.
रालेगणसिद्धि की पिछली यात्रा में पाया था कि अण्णा का आदर्शलोक साकार होने जा रहा है
१९९८ आज में एक वास्तविक आदर्शलोक के प्रत्यक्ष दर्शनों के लिए निकला था...
इस बार रास्ते के पेड उदास थे... अंधे को आंखे मिली, परन्तु...... एक विशिष्ट गांव में पहुचंने के रोमांच का अनुभव नही हुसा...... तपती दोपहर में सडक पर अकेला था......
अतिथी-निवास पर सरकारी तंत्र-सा व्यवहार.... प्रदर्शनी-हॉल... लगा, यह गांव वर्ष १९९४ में अटककर रह गया है...... तपती दोपहरी में पुनः एक वार असली रालेगण जे दर्शनो को अकेला निकलना पडा.. गाव केए गलियों में पेंडों की गैर मोजूदगी बडी खली.... यह कैसा पागल है! का भाव दिखा जन-मन में.. अण्णा का कमरा उअन जैसा ही सादवीपूर्ण था, लेकिन चोर-उचक्कों का भय वहां भी था....
मंदिर-परिसर में भी गंदगी थी...गाव को घेरे नंगे-बूचे पर्वत जल-संग्रहण क्षेत्र के विकास और वृक्षारोपण अभियान पर प्रश्नचिह्न लगाते है
रालेगण का कायाकल्प हुआ है, लेकिन सीमित अर्थो मै
अभी तक का परिर्वतन अण्णा के त्याग और तपस्या का परिणाम् है और ग्रामवासियों के स्वार्थ पर आधारित है....
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